उभयालंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण | Ubhaya Alankar ki Paribhasha

इस आर्टिकल में आज हम अलंकार के तीसरे भाग/पार्ट यानी उभयालंकार (Ubhaya Alankar Ki Paribhasha) के बारे में विस्‍तार से जानेंगे। अलंकार के बारे में हमने पहले ही विस्‍तार से आर्टिकल लिखा हैं यदि आपने उस आर्टिकल को अभी नहीं पढ़ा हैं तो, आप उसे जरूर पढ़े जिससे की आपको अलंकार अच्‍छे से समझ आ जाए।

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आज  हम इस आर्टिकल में उभयालंकार से संबंधित सभी महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नों को समझेंगे। जैसं की उभयालंकार किसे कहते है, उभयालंकार की परिभाषा (Ubhaya Alankar ki Paribhasha) अर्थालंकार के भेद आदि।

उभयालंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण | Ubhaya Alankar ki Paribhasha

उभयालंकार की परिभाषा

जहॉं पर अलंकार में शब्‍द और अर्थ दोनों का प्रयोग किया जाता हैं अर्थात जो अलंकार शब्‍दालंकार तथा अर्थालंकार के प्रयोग से बनता हैं वह उभयालंकार कहलाता हैं। इसका निर्माण दो अलंकारों के योग से होता हैं।

उदाहरण

कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।

उभयालंकार के प्रकार

उभयलंकार को दो भागों में वर्गीकृत किया गया हैं।

  • संसृष्टि उभयालंकार
  • संकर उभयालंकार

संसृष्टि अलंकार

संसृष्टि अलंकार के अलंकारों के मिलने से बनता हैं इसके बावजूद इस अलंकार को आसानी से पहचाना जा सकता हैं। इसमें शब्‍दालंकार तथा अर्थालंकार भी शामिल होते हैं।

जैसे – तिल-तंडुल

ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं, की तिल और तंडुल (चावल) एक साथ हैं। लेकिन ये दोनों अलग-अलग दिखाई दे रहे हैं। इन दोनों को आसानी से पहचाना जा सकता हैं।

भूपति भवनु सुभायँ सुहावा, सुरपति सदनु न परतर पावा।

मनिमय रचित चारू चौबारे, जनु रतिपति निज हाथ सँवारे।।

उपरोक्‍त पंक्तियों के प्रथम दो चरणों में ‘प्रतीप अलंकार’ हैं तथा अंतिम दो चरणों में ‘उत्‍प्रेक्षा अलंकार’ हैं। इसलिए यहॉं पर प्रतीप अलंकार और उत्‍प्रेक्षा अलंकार की संसृष्टि हैं।

संकर उभयालंकार

संकर उभयालंकार का निर्माण भी कई अलंकारों से मिलकर होता हैं। इनको अलग कर पाना संभव नहीं होता हैं। अर्थात नीर-क्षीर-न्‍याय से परस्‍पर मिश्रित अलंकार ‘संकर उभयालंकार’ कहलाता हैं।

उदाहरण

सठ सुधरहिं सत संगति पाई।

पारस-परस कुधातु सुहाई।।

तुलसीदास: ‘पारस-परस’ में ‘अनुप्रास अलंकार’ तथा ‘यमक अलंकार’ दोनों इस प्रकार मिले हैं कि इनका पृथक्‍करण करना संभव नहीं हैं। अत: यहॉं ‘संकर उभयालंककार’ हैं।

FAQ:

उभयालंकार के कितने भेद होते हैं?

उभयालंकार के दो भेद होते हैं – 1. संसृष्टि उभयालंकार 2. संकर उभयालंकार

उभयालंकार की परिभाषा क्‍या हैं?

जहॉं पर अलंकार में शब्‍द और अर्थ दोनों का प्रयोग किया जाता हैं अर्थात जो अलंकार शब्‍दालंकार तथा अर्थालंकार के प्रयोग से बनता हैं वह उभयालंकार कहलाता हैं। इसका निर्माण दो अलंकारों के योग से होता हैं।

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निष्‍कर्ष

तो आप सभी को “उभयालंकार की परिभाषा, प्रकार और उदाहरण | Ubhaya Alankar ki Paribhasha” के बारे में सारी जानकारी प्राप्‍त हो गई होगी। हमें पूरी उम्‍मीद हैं कि आपको यह जानकारी बहुत पसंद आयी होगी। अगर आपके कोई प्रश्‍न हो तो नीचे कमेंट करके जरूर पूछे और पोस्‍ट को अपने सोशल मीडिया और दोस्‍तों के साथ जरूर शेयर करें।

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