श्लेष अलंकार की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण | Shlesh Alankar ki Paribhasha
पाठकों आज हम बात करने वाले हैं श्लेष अलंकार के बारे में और जानेंगे Shlesh Alankar ki Paribhasha और श्लेष अलंकार के उदाहरण। दरअसल अलंकारों को उनकी प्रकृति के अनुसार दो भागों शब्दालंकार और अर्थालंकार में विभाजित किया गया हैं। चूँकि श्लेष अलंकार की प्रकृति शाब्दिक हैं। अत: यह अलंकार शब्दालंकार के अंतर्गत आता हैं।
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श्लेष अलंकार किसे कहते हैं?
‘श्लेष’ का मतलब होता हैं मिला हुआ या चिपका हुआ। श्लेश अलंकार में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता हैं, जिनके एक नहीं बल्कि अनेक अर्थ होते हैं। जहॉं पर कोई एक शब्द एक ही बार आये लेकिन उसके अर्थ अलग-अलग निकले वहॉं पर श्लेष अलंकार होता हैं।
उदाहरण
“रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।”
श्लेष अलंकार के प्रकार/भेद
श्लेष अलंकार के प्रकार निम्नलिखित हैं-
- अभंग श्लेष अलंकार
- सभंग श्लेष अलंकार
अभंग श्लेष अलंकार
अभंग श्लेष में शब्दों को बिना तोड़े अनेक अर्थ निकलते हैं।
जैसे:-
“रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।।”
यहॉं ‘पानी’ के अनेक अर्थ हैं। इसके तीन अर्थ हैं- कांति, सम्मान और जल।
सभंग श्लेष अलंकार
सभंग श्लेष अलंकार में शब्दों को तोड़ना आवश्यक होता हैं।
जैसे:-
सखर सुकोमल मंजु, दोषरहित दूषण सहित।
यहॉं ‘सखर’ का मतलब कठोर तथा दूसरा अर्थ दूषण के साथ हैं। यह दूसरा अर्थ ‘सखर’ को तोड़कर किया गया हैं, इसलिए यहॉं ‘सभंग श्लेष’ अलंकार हैं।
श्लेष अलंकार के उदाहरण
जे रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय।
रहीम जी ने दोहे के द्धारा दीये एवं कुपुत्र के चरित्र को एक जैसा दर्शाने की कोशिश की हैं। रहीम जी कहते हैं कि शुरू में दोनों ही उजाला करते हैं लेकिन बढ़ने पर अन्धेरा हो जाता हैं। इस उदाहरण में बढे शब्द से दो विभिन्न अर्थ निकल रहे हैं। दीपक के सन्दर्भ में बढ़ने का मतलब हैं बुझ जाना जिससे अन्धेरा हो जाता हैं। कुपुत्र के संदर्भ में बढ़ने से मलतब हैं बड़ा हो जाना।
चरन धरत चिंता करत, चितवत चारों ओर।
सुवरन की खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।।
या अनुरागी चित की गति समुझै नहीं कोई।
ज्यों ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों त्यों उज्जलु होई।।
विपुल धन अनेकों रत्न हो साथ साथ लाए।
प्रियतम बता दो लाल मेरा कहॉं हैं।।
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का हैं आतंक
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई।
दुर्दिन में आंसू बनकर आज बरसने आई।।
मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोय।
जा तन की झॉंई परे श्याम हरित दुति होय।।
मधुबन की छाती को देखो, सूखी इसकी कितनी कलियॉं।
यमक और श्लेष अलंकार में अंतर
यमक अलंकार में एक ही शब्द एक से अनेक बार आता हैं और हर बार उसका अर्थ भिन्न होता हैं जबकि श्लेष अलंकार में एक शब्द एक ही बार आता हैं और एक ही शब्द के दो या दो से अधिक अर्थ निकलते हैं। जैसे –
यमक अलंकार के उदाहरण
“तीन बेर खाती थी वो तीन बेर खाती हैं।”
उपर्युक्त उदाहरण में 3 बेर शब्द दो बार आया हैं और दोनों बार उसका अर्थ अलग हैं एक बार ‘बेर’ का अर्थ – 3 बार तथा दूसरी बार ‘बेर’ का अर्थ – 3 बेर के दाने हैं।
लेकिन श्लेष अलंकार के उदाहरण
“चरण धरत चिंता करत, चितवत चारहुँ ओर।
सुवरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।।”
इस उदाहरण में सुवरन शब्द केवल एक बार आया हैं और उसके दो से अधिक चिपके हुए अर्थ हैं। कवि के लिए सुवरन का अर्थ – ‘सुन्दर अक्षर’ तथा व्यभिचारी के लिए सुवरन का अर्थ – ‘सुन्दर स्त्री’ एवं चोर के लिए सुवरन का अर्थ ‘सोना’ होता हैं।
इस प्रकार यमक अलंकार और श्लेष अलंकार में अंतर एक शब्द का हैं जो यमक अलंकार में एक से अनेक बार आ सकता हैं लेकिन हर बार उसका अर्थ अलग-अलग होता हैं। और श्लेष अलंकार में एक शब्द एक ही बार आता हैं उसका अर्थ ‘चिपका हुआ’ होता हैं और उसी एक शब्द के अर्थ भिन्न हो सकते हैं।
FAQ:
श्लेष अलंकार को कैसे पहचाने?
जहॉं काव्य में प्रयुक्त किसी एक शब्द के कई अर्थ हों वहॉं श्लेष अलंकार होता हैं।
श्लेष कितने प्रकार का होता हैं?
श्लेष अलंकार दो प्रकार के होते हैं – 1. अभंग श्लेष अलंकार 2. सभंग श्लेष अलंकार
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निष्कर्ष
तो आप सभी को “श्लेष अलंकार की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण | Shlesh Alankar ki Paribhasha ”के बारे में सारी जानकारी प्राप्त हो गई होगी। हमें पूरी उम्मीद हैं कि आपको यह जानकारी बहुत पसंद आयी होगी। अगर आपके कोई प्रश्न हो तो नीचे कमेंट करके जरूर पूछे और पोस्ट को अपने सोशल मीडिया और दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।