Natak Kise Kahate Hain | नाटक किसे कहते हैं? परिभाषा, विकासक्रम और तत्‍व

आज के इस लेख में हम नाटक का विकास क्रम, नाटक की परिभाषा और नाटक के तत्‍वों को जानेंगे। हिंदी में नाटक लिखने का प्रारंभ पद्य के द्धारा हुआ लेकिन आज के नाटकों में गद्य की प्रमुखता हैं। नाटक गद्य का वह कथात्‍मक रूप हैं, जिसे अभिनय संगीत, नृत्‍य, संवाद आदि के माध्‍यम से रंगमंच पर अभिनीत किया जा सकता हैं।

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Natak Kise Kahate Hain | नाटक किसे कहते हैं? परिभाषा, विकासक्रम और तत्‍व

नाटक किसे कहते हैं? (Natak kise kahate hain)

नाटक ‘नट’ शब्‍द से निर्मित है जिसका आशय हैं – सात्विक भावों का अभिनय।

नाटक दृश्‍य काव्‍य के अंतर्गत आता हैं। इसका प्रदर्शन रंगमंच पर होता हैं। भारतेंदु हरिशचन्‍द्र ने नाटक के लक्षण देते हुए लिखा हैं – “नाटक शब्‍द का अर्थ नट लोगों की क्रिया हैं. दृश्‍य-काव्‍य की संज्ञा रूपक हैं। रूपकों में नाटक ही सबसे मुख्‍य है इससे रूपक मात्र को नाटक कहते हैं।”

नाटक की परिभाषा (Natak ki paribhasha)

बाबू गुलाबराय के अनुसार – “ नाटक में जीवन की अनुकृति को शब्‍दगत संकेतो में संकुचित करके उसको सजीव पात्रों द्धारा एक चलते-फिरते सप्राण रूप में अंकित किया जाता हैं।

नाटक में फैले हुए जीवन व्‍यापार को ऐसी व्‍यवस्‍था के साथ रखते हैं कि अधिक से अधिक प्रभाव उत्‍पन्‍न हो सके। नाटक का प्रमुख उत्‍पादन है उसकी रंगमंचीयता।

हिन्‍दी साहित्‍य में नाटकों का विकास वास्‍तव में आधुनिक काल में भारतेंदु युग में हुआ। भारतेंदु युग से पूर्व भी कुछ नाटक पौराणिक, राजनैतिक, सामाजिक, आदि विषयों को लेकर रचे गए। सत्रहवीं-अठारहवीं शताब्‍दी में रचे गए नाटकों में मुख्‍य हैं- हृदयरामकृत- हनुमन्‍त्राटक, बनारसीदास- समयसार आदि।

पाणिनि के अनुसार – “नाटक शब्‍द की व्‍युत्‍पति ‘नट’ धातु से हुई मानी जाती हैं।”

रामचंद्र गुणचंद्र के अनुसार, – “ ‘नाट्य दर्पण’ ग्रंथ में नाटक शब्‍द की व्‍युत्‍पत्ति ‘नाट’ धातु से हुई हैं”

भारतेंदु हरिशचन्‍द्र के अनुसार, – “नाटक शब्‍द का अर्थ नट लोगों की क्रिया हैं। दृश्‍य-काव्‍य की संज्ञा-रूपक हैं। रूपकों में नाटक ही सबसे मुख्‍य है इससे रूपक मात्र को नाटक कहते हैं।”

भरतमुनि के अनुसार, – “संपूर्ण संसार के भावों का अनुकीर्तन ही नाट्य हैं।”

अथवा

अभिनय की दृष्टि से संवादों एवं द्रश्‍यों पर आधारित विभिन्‍न पात्रों द्धारा रंगमंच पर प्रस्‍तुत करने के लिए लिखी गई साहित्यिक रचना ‘नाटक’ कहलाती हैं।

नाटक के तत्‍व (Natak Ke Tatva)

कथावस्‍तु

कथावस्‍तु का अर्थ है नाटक में पुस्‍तुत घटना चक्र अर्थात जो घटनाएं नाटक मे घटित हो रही हैं। यह घटना चक्र विस्‍तृत होता हैं और इसकी सीमा में नाटक की स्‍थूल घटनाओ के साथ पात्रो के आचार विचारों का भी समावेश हैं।

पात्र और चरित्र चित्रण

वैसे तो और नाटक में पात्रों की संख्‍या बहुत अधिक होती हैं, किंतु सामान्‍यत: एक-दो पात्र ऐसे मुख्‍य होते हैं। किसी विषय नाटक एक प्रधान पुरूष पात्र होता हैं जिसे हम ‘नायक’ कहते हैं और इसके अलावा प्रधान या मुख्‍य स्‍त्री पात्र को हम ‘नायिका’ कहते हैं। किसी भी चरित्र प्रधान नाटक में नाटक की कथावस्‍तु एक ही पात्र के चारों ओर घूमती रहती हैं।

देशकाल तथा वातावरण चित्रण एवं संकलनत्रय

परिवेश का अर्थ होता हैं देश काल। किसी भी नाटक मे उल्‍लेखित घटनाओं का संबंध किसी ना किसी स्‍थान एवं काल से होता है। नाटक में यथार्थता, सजीवता एवं स्‍वाभाविकता लाने के लिए यह आवश्‍यक है कि नाटककार घटनाओं का यथार्थ रूप से चित्रण करें।

कथोपकथन या संवाद

नाटक के भिन्‍न-भिन्‍न पात्र आपस में एक दूसरे से जो वार्तालाप करते हैं, उसे संवाद कहते हैं। इन संवादों के द्धारा नाटक की कथा आगे बढ़ती है, नाटक के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है। नाटक में स्‍वगत कथन भी होते हैं। स्‍वगत कथन में पात्र स्‍वयं से ही बात करता हैं। इनके द्धारा नाटककार पत्रों की मानसिक स्थिति का चित्रण करता हैं।

शैली

रंगमंच की दृष्टि से नाटक की कई शैलियां है जैसे भारतीय शास्‍त्रीय नाटय शैली, पाश्‍चात नाटय शैली। इसके अतिरिक्‍त विभिन्‍न लोकनाट्य शैलियां भी हैं जैसे- रामलीला, रासलीला, महाभारत आदि।

अभिनेयता एवं रंगमंच

अधिकतर नाटककार नाटक की रचना रंगमंच पर खेले जाने के लिए ही करते हैं। रंगमंच पर खेलने के बाद ही एक नाटक पूर्ण होता हैं। रंगमंच पर नाटक की प्रस्‍तुति जिस व्‍यक्ति के निर्देशन मे संपन्‍न होती हैं, उसे निर्देश आके कहते हें। निर्देशक रंगमंच के उपकरणों एवं अभिनेताओं के द्धारा उस नाटक को प्रेक्षकों के सामने प्रस्‍तुत करता हैं।

उद्देश्‍य

कोई भी नाटककार अपने नाटक के द्धारा गंभीर उद्देश्‍य को हमारे सामने प्रस्‍तुत करता है। अनेक नाटककारों ने स्‍वयं अपने नाटकों के उद्देश्‍य की चर्चा की है। उदाहरण के लिए प्रसाद जी ने ‘चंद्रगुप्‍त‘, ‘विशाख’ आदि ऐतिहासिक नाटकों के लिखने के उद्देश्‍य पर प्रकाश डाला है।

नाटक और एकांकी में क्‍या अंतर हैं

नाटक और एकांकी में अंतर –

नाटकएकांकी
नाटक में अनेंक अंक होते हैं।एकांकी में एक अंक होता हैं।
नाटक में अधिकारिक कथा के साथ- साथ सहायक गौण कथाएं भी होती हैंएकांकी में एक ही कथा और घटना होती हैं।
नाटक में चरित्र का क्रमश: विकास दर्शाया जाता हैं।एकांकी में चरित्र तत्‍काल प्रकट हो जाता हैं।
नाटक के कथानक में फैलाव और विस्‍तार होता हैं।एकांकी के कथानक में ही घनत्‍व रहता हैं।
ध्रुवस्‍वामिनी – जयशंकर प्रसाद द्धारा रचित।दीपदान – रामकुमार वर्मा द्धारा रचित

नाटक की प्रमुख विशेषताएं

  1. नाटक में प्रमुख कथा के साथ गौण कथाएं भी जुड़ी रहती हैं।
  2. इसमें कई अंक होते हैं।
  3. पात्रों की संख्‍या अधिक होती हैं।
  4. यह एक दृश्‍य काव्‍य हैं।
  5. कथानक की विकास प्रक्रिया धीमी रहती हैं।
  6. नाटक में चरित्र का क्रमश: विकास दिखाया जाता हैं।
  7. नाटक में प्रमुख और प्रासंगिक कथावस्‍तु लम्‍बी होती हैं।

प्रमुख नाटक एवं नाटककार

नाटकनाटककार
ध्रुवस्‍वामिनीजयशंकर प्रसाद
शिवसाधनाहरिकृष्‍ण प्रेमी
जय-पराजयउदयशंकर भट्ट
कर्तव्‍यसेठ गोविंद दास
सन्‍यासीलक्ष्‍मी नारायण मिश्र

नाटक के महत्‍वपूर्ण अंग – (नाटक के अंग)

नाटक के पॉंच अंग हैं-

  1. प्रारम्‍भ
  2. विकास
  3. चरमसीमा
  4. उतार
  5. अन्‍त

अर्थ प्रकृतियॉं भी पॉंच हैं-

  1. बीच
  2. बिन्‍दु
  3. पताका
  4. प्रकरी
  5. कार्य

नाटक का महत्‍व क्‍या हैं?

नाटक एक ऐसी दुनिया में रहने और काम करने के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए एक महत्‍वपूर्ण उपकरण है जो पदानुक्रम के बजाय तेजी से टीम-ओरिएंटेड है। नाटक छात्रों को टोलरेंस और एम्‍पाटी विकसित करने में भी मदद करता हैं। नाटकीय कला शिक्षा समस्‍या समाधान में रचना को उत्‍तेजित करने का एक महत्‍वपूर्ण माध्‍यम हैं।

FAQs:

नाटक के कितने तत्‍व होते हैं?

पाश्‍चात्‍य विद्धानों ने नाटक के छह तत्‍व स्‍वीकार किए हैं- कथावस्‍तु, कथानक, पात्र, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल-वातावरण, भाषाशैली और उद्देश्‍य।

नाटक कितने प्रकार के होते हैं?

नाटक चार प्रकार के होते हैं, वे हैं कॉमेडी, ट्रेजेडी, ट्रेजिकोमेडी और मेलोड्रामा।

ईहामृग किसका भेद हैं?

ईहामृग रूपक का एक भेद हैं।

नाट्य वृत्तियों की संख्‍या कितनी होती हैं?

आचार्य भरत ने नाटयशास्‍त्र मे नाट्य वृत्तियॉं चार मानी हैं।

एक अंक का नाटक को क्‍या कहा जाता है?

एक अंक वाले नाटकों को एकांकी कहते हैं। अंग्रेजी के ‘वन ऐक्‍ट प्‍ले‘ शब्‍द के लिए हिंदी में ‘एकांकी नाटक’ और ‘एकांकी’ दोनों ही शब्‍दो का समान रूप से व्‍यवहार होता हैं।

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