नारी का महत्‍व पर निबंध | Essay On Nari ka Mahatva in Hindi

Essay On Nari ka Mahatva in Hindi:- सृष्टि के आदिकाल से ही नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। नारी सजन की पूर्णता है ।उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असंभव है। समाज के रचना विधान में नारी के मां, प्रेयसी, पुत्री एवं पत्नी अनेक रूप हैं। वह षम परिस्थितियों में देवी है ,तो विषम परिस्थितियों में दुर्गा भवानी। मनु स्मृति इसका उदाहरण है–

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नारी का महत्‍व पर निबंध | Essay On Nari ka Mahatva in Hindi

“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता”।

नारी का महत्‍व पर निबंध (100 शब्दों में)

भारतीय समाज में नारी का बहुत महत्व रहा है प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में नारी को देवी का रूप माना जाता है एवं उसकी पूजा की जाती है। भारतवर्ष की बहुत सी स्त्रियों ने हमारे ग्रंथों, पुराणों उपनिषदों आदि की रचना की है, जो कि उनके ज्ञान कौशल का एक छोटी सी झलक है।

लेकिन जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ा और वह पुरुष प्रधान हो गया तो वहां पर स्त्रियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया एवं उसे भोग विलासिता की वस्तु के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। किंतु पुनः जैसे ही समाज में एक नई चेतना का विकास हुआ तो भारतीय समाज में पुनः नारी ने को वही सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की गई है।

आज की भारतीय नारी हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबर की टक्कर दे रही है ।एवं अपने नाम के कीर्तिमान स्थापित कर रही है ।अतः हमें उसके प्रति सम्मानपूर्ण होना चाहिए क्योंकि वह हमारे जीवन का एक आधार है।

नारी का सम्‍मान पर निबंध 250 शब्दों मे (Essay on Nari ka Mahatva)

भारतीय समाज में नारी को देवी का अवतार समझा जाता है। नारी की इज्जत की जाती है ।भारतीय समाज में नारी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है ।किसी भी शुभ कार्य में नारी की भूमिका अहम होती है। नारी घर की लक्ष्मी होती है, नारी मां भी होती है, और एक बहन की होती है ।नारी जीवनसंगिनी भी होती है ,और नारी बेटी भी होती है ।अतः हमारे जीवन के हर पहलू में एक स्त्री की भूमिका होती है ।इसीलिए हमें स्त्री का सम्मान करना चाहिए।

परंतु ना जाने क्यों जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे महिलाओं की स्थिति दयनीय होती गई और उसको भोग विलास की वस्तु बना दिया गया परंतु समाज ने पुनः उन्नति की और स्त्रियों को उसका हक दिया। छोटी सी उम्र में उनपर बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां डाल दी गई महिलाओं की आजादी छीन कर उन्हें पुरुषों के सामान्य निर्भर होने पर मजबूर कर दिया गया बाल विवाह जैसे कारणों की वजह से वह शिक्षा से भी वंचित हो गई।

समाज में बिगड़ रही स्त्री के जीवन को सुधारने के लिए अनेक समाज सुधारक कार्य कर रहे हैं। आजादी के बाद महिलाएं अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चलने लगी है। समाज में महिलाओं की स्थिति काफी सुधार आया है। महिला आज चांद तक पहुंच चुकी है, परंतु हम यह नहीं कह सकते कि आज संपूर्ण नारी जाति शोषण से मुक्त है। आज के समाज में नारी का शोषण किया जाता है उन्हें उपभोग की वस्तु समझा जाता है। आज के समाज में भी दहेज प्रथा जैसी अनेक को प्रथाएं चालू है ,जो कि उनके जीवन में एक अत्याचार से कम नहीं है ।अतः हमें इन सब को रोककर स्त्री को सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार देना चाहिए।

नारी मातृत्व का रूप होती है, जीवन का मूल आधार होती है हमें नारी का सम्मान करना चाहिए। नारी से अधिक शक्तिशाली और सहनशील इस संसार में कोई नहीं है। भारतीय संस्कृति को बनाए रखते हुए हमें नारी का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि नारी से ही जीवन है।

भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबंध (300 शब्दों में)

भारतीय समाज में मानव समूह को परिवार और समाज के रूपों में बांटा गया और दोनों ही रूपों में पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान की गई है । परिवार के दो आधार स्तंभ माने गए स्त्री और पुरुष।किसी भी सामाजिक कार्य में दोनों ही आधार स्तंभों का स्थान अनिवार्य माना गया है। लेकिन परिवार की निरंतरता और संचित संस्कारों को बनाए रखने के लिए भारतीय संस्कृति नारी को अधिक सम्मान की दृष्टि से देखा गया।

वैदिक काल में नारी को पर्याप्त स्वतंत्रता के उल्लेख प्राप्त होते हैं गार्गी घोष, अपालरा, मैत्रेयी, सुभागी आदि नारियों ने वैदिक अध्ययन किए व नवीन मंत्रों का भी निर्माण किया। वैदिक काल में परिवार के सभी निर्णय लेने का अधिकार मातृशक्ति को प्रधान था।

भारतीय समाज में नारी को गृह लक्ष्मी माना जाता है। ईश्वर ने नारी को जन नैसर्गिक गुणों से युक्त किया है। वह सृष्टि के विस्तारक, संस्कारों के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। पुरुष यदि परिश्रम करके आजीविका प्राप्त करता है तो परिवार के अस्तित्व को बनाए रखने का कार्य नारी ही करती है। इसी कारण सभी धार्मिक क्रियाओं, पूजन, उत्सव आदि में नारी को प्राथमिकता दी जाती है।

भारतीय संस्कृति में नारी को कई रूपों में देखा जाता है लेकिन हर रूप में वह सम्माननीय मानी गई है दुर्गा रूप में वह शक्ति का भंडार है वह लक्ष्मी रूप में समृद्धि कारक है सरस्वती रूप में वह गुरु है बहन बनकर भाई के लिए रक्षा सूत्र बांधती है मां बनकर पुत्र के हर कष्ट को दूर करने वाली अभय दात्री बनती है पत्नी बनकर बॉस को आत्म सम्मान से युक्त बनाती है कन्या को देवी रूप में पूजन सम्मान भारत में ही दिया जाता है।

पाश्चात्य संस्कृति में नारी को पुरुष के स्तर पर लाकर उसकी महानता को ही निकाल के साधारण भोगने की वस्तु बना दिया जाता है यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्तमान या मध्य काल में नारी को जो दास्तां भोगनी पड़ी वह आतंक फैलाने वाले अधर्मी आक्रांताओं के अत्याचार के कारण, समाज के पतन के कारण, हुई इसका अर्थ यह नहीं की मूल रूप से भारतीय संस्कृति में नारी को सम्मानजनक पद पर नहीं देखा जाता है।

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भारतीय समाज में नारी अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है जिसे सम्मान पूर्ण पद पर बैठाने के लिए नारी के त्याग और सम्मान पूर्ण जीवन के गहन अनुसंधान के पश्चात उसके स्वतंत्र, सशक्त रूप को भी प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

समाज में नारी के महत्‍व पर निबंध (500 शब्दों में)

प्रस्तावना–

सृष्टि चक्र में स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं ।नारी समाज रूपी गाड़ी का एक पहिया है जिसके बिना समग्र जीवन ही पंगु है। मानव जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो यह ज्ञात होगा कि जीवन में कौटुंबिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक ,साहित्य, धार्मिक, सभी क्षेत्रों में प्रारंभ से ही नारी की अपेक्षा पुरुष का अधिपत्य रहा है। पुरुष ने अपनी श्रेष्ठता और शक्ति संपन्नता का लाभ उठाकर स्त्री जाति पर मनमाने अत्याचार किए हैं। उसने नारी की स्वतंत्रता का अपहरण कर उसे पराधीन बना दिया। सहयोगिनी या सहचरी के स्थान पर उसे अनुचर बना दिया। और स्वयं उसका पति, स्वामी,नाथ पथ प्रदर्शक और साक्षात ईश्वर बन गया।

प्राचीन भारतीय नारी–

प्राचीन भारतीय समाज में नारी जीवन के स्वरूप की व्याख्या करें तो हमें ज्ञात होगा कि वैदिक काल में नारी को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। वह सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ मिलकर कार्य करती थी। रोमशा और लोपामुद्रा आदि अनेक नारियों ने ऋग्वेद के सूत्रों की रचना की थी ।रामायण काल में भी नारी की महत्ता अक्षुण्ण रही। रानी कैकेई ने राजा दशरथ के साथ युद्ध भूमि में जाकर उनकी सहायता की। इस युग में सीता, अनुसूइया एवं सुलोचना आदि नारी आदर्श बनी। महाभारत काल में नारी पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने लगी। इस युग में नारी समस्त गतिविधियों के संचालन की केंद्र बिंदु थी। द्रोपती, गांधारी और कुंती इस युग की शक्ति थी।

मध्यकाल में नारी–

मध्ययुग आते-आते नारी की सामाजिक स्थिति दयनीय बन गई। भगवान बुद्ध द्वारा नारी को सम्मान दिए जाने पर भी भारतीय समाज में नारी के गौरव का ह्रास होने लगा ।फिर भी वह पुरुष के समान ही सामाजिक कार्यों में भाग लेती थी साहभागिनी और समानाधिकारणी का उसका रूप पूरी तरह लुप्त नहीं हो पाया था। मध्यकाल में शासकों की काम लोलुप दृष्टि से नारी को बचाने के लिए प्रयत्न किए जाने लगे।

परिणाम स्वरूप उसका अस्तित्व घर की चारदीवारी तक सिमट कर रह गया वह कन्या रूप में पिता पर, पत्नी रूप में पति, और मां के रुप में अपने पुत्र पर आश्रित होती चली गई‌। यद्यपि इस युग में कुछ नारियां अपवाद रूप में शक्ति संपन्न एवं स्वावलंबी थी फिर भी समाज सामान्यता नारी को दृढ़ से द्रढतर बंधनों में जकड़ता ही चला गया मध्यकाल में आकर शक्ति स्वरूपा नारी ‘अबला’ बन कर रह गई।

भक्ति काल में नारी जन जीवन के लिए इतनी तिरस्कृत , क्षूद्र और उपेक्षित बन गई कि कबीर, सूर, तुलसी जैसे महान कवियों ने उनकी संवेदना और सहानुभूति में दो शब्द तक नहीं कहे।

आधुनिक समाज में नारी–

आधुनिक काल के आते-आते नारी चेतना का भाव उत्कृष्ट रूप से जागृत हुआ। युग युग की दास्तां से पीड़ित नारी के प्रति एक व्यापक सहानुभूति पूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा। बंगाल में राजा राममोहन राय और उत्तर भारत में महर्षि दयानंद सरस्वती ने नारी के पुरुषों के अनाचार की छाया से मुक्त करने को क्रांति का बिगुल बजाया। अनेक कवियों की वाणी भी दुःखी नारियों की सहानुभूति के लिए अवलोकनीय है।

आधुनिक युग में नारी को विलासिनी और अनुचरी के स्थान पर देवी, मां, सहचरी और प्रेयसी के गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुए। नारियों ने सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर कार्य किया। विजयलक्ष्मी पंडित, कमला नेहरू, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, इंदिरा गांधी ,सुभद्रा कुमारी चौहान ,महादेवी वर्मा आदि के नाम विशेष सम्मान पूर्ण हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने नारियों की स्थिति सुधारने के लिए अनेक प्रयत्न किए हैं। हिंदू विवाह और कानून में सुधार करके उसने नारी और पुरुष को सामान भूमि पर लाकर खड़ा कर दिया। दहेज विरोधी कानून बनाकर उसने नारी की स्थिति और भी सुधार कर दिया। लेकिन सामाजिक एवं आर्थिक स्वतंत्रता ने उसे भोगवाद की ओर प्रेरित किया है,आधुनिकता के मोह में पड़कर हुए आज पतन की ओर जा रही है।

उपसंहार–

इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से हमें वैदिक काल से लेकर आज तक नारी के विभिन्न रूपों और स्थितियों का आभास मिल जाता है ।वैदिक काल की नारी ने शौर्य, त्याग, समर्पण, विश्वास एवं शक्ति आदि का आदर्श प्रस्तुत किया। पूर्व मध्यकाल की नारी ने इन्हीं गुणों का अनुसरण कर अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखा।

उत्तर मध्य काल में अवश्य नारी की स्थिति दयनीय रही परंतु आधुनिक काल में उसने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर लिया है। उपनिषद, पुराण, स्मृति तथा संपूर्ण साहित्य में नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। वैदिक युग में शिव की कल्पना ही अर्धनारीश्वर रूप में की गई। मनु ने प्राचीन भारतीय नारी के आदर्श एवं महान रूप की व्यंजना की है।

स्त्री अनेक कल्याण का भाजन है‌ वह पूजा के योग्य है। स्त्री घर की ज्योति है ।स्त्री ग्रह की साक्षात लक्ष्मी है। यद्यपि भोगवाद के आकर्षण में आधुनिक नारी पतन की ओर जा रही है लेकिन भारत के जनजीवन में यह परंपरा प्रतिष्ठित नहीं हो पाई है। आशा है भारतीय नारी का उत्थान भारतीय संस्कृति की परिधि में हो, वह पश्चिम की नारी का अनुकरण ना करके अपनी मौलिकता का परिचय दें।

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